1,573 bytes added,
27 अप्रैल {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मधु 'मधुमन'
|अनुवादक=
|संग्रह=वक़्त की देहलीज़ पर / मधु 'मधुमन'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
कब तलक वादों से ही जीवन गुज़ारा जाएगा
कब जमीनों पर हक़ीक़त को उतारा जाएगा
हर सहूलत है अमीरों के लिए ही बस यहाँ
कब गरीबों का मुक़द्दर भी सँवारा जाएगा
है हमारी अहमियत बस एक दिन के ही लिए
वोट की खातिर ही बस हमको दुलारा जाएगा
आपके ये राजसी जो ठाठ हैं हमसे ही हैं
इस हक़ीक़त को भला कब तक नकारा जाएगा
अपने हक़ के वास्ते लड़ना ही होगा अब हमें
अब नहीं जागे तो ये हक़ भी हमारा जाएगा
आजकल वह उड़ रहा है होश आएगा उसे
आसमाँ से जब ज़मीं पर वह उतारा जाएगा
कह दिया हमने तो ‘मधुमन’ जो हमारे दिल में है
बात निकली है तो उस तक भी इशारा जाएगा
</poem>