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हमको मालूम है वो क्या यहाँ करने आये
संत का चोला पहन करके भेड़िये आये
वो मगरमच्छ तो दरिया में वास करते थे
गाँव में क्या यहाँ तफ़रीह वो करने आये
जिनके दामन में दाग़ अनगिनत देखे हमने
प्रवचन देने वही हम को ढोंगिए आये
जिनके आतंक की चर्चा है ऐसे नेता ही
वोट पाकर के बार - बार जीतते आये
कर दिए जो लहूलुहान ज़िन्दगी मेरी
अब वही लोग मेरे ग़म को बाँटने आये
धर्म - ईमान से जिनका न वास्ता कोई
इम्तहां लेने मेरा ऐसे दोगले आये
सीधे - साधे यहाँ जो लोग उनका क्या होगा
रास्ते भर हम यही बात सोचते आये
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