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बड़ा शोर है कुछ सुनाई न देता
अँधेरे में कुछ भी दिखाई न देता
जो महफ़ूज़ होती मेरी जां, मेरी जां
मदद के लिए मैं दुहाई न देता
 
सही बोलने की सज़ा पा रहा हूँ
ये ज़ालिम ज़माना रिहाई न देता
 
मुझे सिर्फ़ इतनी शिकायत है उससे
ज़हर देता पर बेवफ़ाई न देता
 
कहीं कुछ न कुछ बात होगी यक़ीनन
नहीं तो वो इतनी सफ़ाई न देता
 
कुआँ है इधर तो उधर भी है खांई
वहाँ हूँ जहाँ कुछ सुझाई न देता
 
लहू हो गया होता पानी जो मेरा
तो दिल मेरा इतनी ढिठाई न देता
 
ख़ुदा मेरे जज़्बे रवां हैं अभी तक
मैं लड़ता जो मुझको बुढ़ाई न देता
</poem>
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