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Kavita Kosh से
— तेरी आँखें नीली क्यों हैं, इतनी नीली-नीली ?
— हुआ यह कि जब आंधी गुजर गई, चक्रीली
वहाँ चमक रही थी तब बिजली लाल और नीली औ’ देखा मैंने नाच रही चपल, चंचला अग्नि पीली
और तब नभ में तड़क रही थी तड़ित - दामिनी नीलीरेगिस्तान खेल रहा था मुझसे भी आँख-मिचौलीखिली हुई थीं कानम वन कानन में जड़ी-बूटियाँ वनीलीनीली-पीलीचमक रही थी बजते-बजते, चमक रही थी जैसे घण्टी कोई नीली
और ख़ैर सीढ़ियाँ चढ़कर जब तक मैं पहुँची अपने घर की सीढ़ियाँ चढ़ गया,और उनके ऊपर नीली रात तैर रही थी रज़नी नीलम सी पहले से ही तैर रही थीउन पर,और वसंत नीले रंग की रानी छाई हुई थी,बहार वहाँ पर नीली महारानी बनकरऔर सुगंधित फूल बकाइन के फूल सुगंधित नीले रंग में बदल गए। के कमकर।
'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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