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|रचनाकार=वीरेन्द्र वत्स
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
मैं एकाकी जीवन पथ पर निर्भय निकल पड़ा
तोड़ चला विपदा की कारा
मोड़ चला जीवन की धारा
आहत मन आनंद अश्रु की लय पर मचल पड़ा
मैं एकाकी जीवन पथ पर निर्भय निकल पड़ा
कोई काँपा कल्पित भय से
कोई विकल हुआ विस्मय से
कोई थककर वापस लौटा कोई फिसल पड़ा
मैं एकाकी जीवन पथ पर निर्भय निकल पड़ा
जिस उर से घातक शम्पाएँ
लड़कर चूर-चूर हो जाएँ
वह औरों के दुख की आहट पाकर पिघल पड़ा
मैं एकाकी जीवन पथ पर निर्भय निकल पड़ा
यारी में सर्वस्व लुटाया
अर्थ चुका तो हुआ पराया
जो भी आया वही निकम्मा कहकर उबल पड़ा
मैं एकाकी जीवन पथ पर निर्भय निकल पड़ा
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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मैं एकाकी जीवन पथ पर निर्भय निकल पड़ा
तोड़ चला विपदा की कारा
मोड़ चला जीवन की धारा
आहत मन आनंद अश्रु की लय पर मचल पड़ा
मैं एकाकी जीवन पथ पर निर्भय निकल पड़ा
कोई काँपा कल्पित भय से
कोई विकल हुआ विस्मय से
कोई थककर वापस लौटा कोई फिसल पड़ा
मैं एकाकी जीवन पथ पर निर्भय निकल पड़ा
जिस उर से घातक शम्पाएँ
लड़कर चूर-चूर हो जाएँ
वह औरों के दुख की आहट पाकर पिघल पड़ा
मैं एकाकी जीवन पथ पर निर्भय निकल पड़ा
यारी में सर्वस्व लुटाया
अर्थ चुका तो हुआ पराया
जो भी आया वही निकम्मा कहकर उबल पड़ा
मैं एकाकी जीवन पथ पर निर्भय निकल पड़ा
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