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घेरे और मीनारें / रैनेर मरिया रिल्के / अनिल जनविजय
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12 जुलाई
ख़ुदा मीनार है क़दीमी, जिसके चक्कर लगा रहा हूँ
गुज़र चुका है अब तक हज़ार-साला-दौर
इक बाज़ हूँ
या मैं
कि
मैं
इक तूफ़ान हूँ समय का
या हूँ अज़ीम तराना, अपनी वुजूद के इस ठौर
अनिल जनविजय
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