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कात्या उषाकोवा के लिए / अलेक्सान्दर पूश्किन / अनिल जनविजय
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14 अगस्त
’आमीन! आमीन! तू हो जा चूरा!’ इस तरह भूतों से लड़ते थे
मगर अब इन दिनों में
हमारे
बन्द हो गए आने सब भूत-शैतान
कहाँ चले गए सारे के सारे, बात यह जाने, बस, भगवान
पर तुम ओ सुन्दरी ! मेरी चुड़ैल हो, मेधावी हो, प्रतिभावान
अनिल जनविजय
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