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<poem>
पैसा देश का रोटी देश की खाता है
कहाँ है जो भारत की बात सुनाता है

कौन उगाकर चला गया है बारूदें
धरती का यह हाल न देखा जाता है

जाने किस आधार पे पीड़ा आधारित
दर्द से जाने कैसा मेरा नाता है

सपनों के आकाश में बैठा चाँद कोई
बादल ओढ़े गीत नया इक गाता है

एक दिए को द्वारे रखकर सो जाओ
दूर कहीं से कोई 'मुसाफ़िर' आता है
</poem>
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