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मेरी पहेली बुझाओ / स्टीवन क्रायन / अनिल जनविजय
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गुरूवार को 01:39 बजे
<poem>
मेरी पहेली बुझाओ !
निर्दयी बाज़ की तरह
बड़ी
बहुत
तेज़ समय है उड़ताघायल
हो जाता है जब
होने पर
आदमी, शायद ही घर आकर मरता
एक ताक़तवर हाथ समुद्र की लहरों को नियंत्रित करता
किसी झूठी बात पर जब उड़ाई जाती है हँसी, तो ऐसा तिरस्कार बड़ा दर्दनाक लगता
अनिल जनविजय
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