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15:20, 3 फ़रवरी 2009
[[Category:कविता]]
<poem>
बच्चा उस ख़त की भी छत पर बैठा एक भाषा है --- रो रहा है अनगढ़ बेतरतीब पर स्नेह की गन्ध में पगी रिश्ते में सगी कलम से कम विश्वास की चरम सीमा से अधिक ठगी
बच्चे की ख़त का मजमून किलकारियाँ आँगन में उसे टेढ़े-मेढ़े गूँज रही हैं पर सच्चे बच्चा सपने को आरमान की ओर मुँह किये मुस्कुरा रहा खोलता है
बच्चे की दुनिया में जिसे बुना है जिस तरह बड़े यत्न से चला जाता है कोई अम्मा ने उसी अपनी याद के महीन होते जा रहे धागों से कोंपल की तरह लौट भी आता है हर बार फ़ूटती सचमुच हरे पत्ते तक पहुँच एक आत्मा अचानक कुम्हला जाती है बच्चा अम्मा की बूढ़ी आँख़ों में प्रतीक्षा ख़त के आखर अम्मा के हाथ हैं ऊपर उठे हुए आशीर्वाद की मुद्रा में ख़त के आखर बोलते-बोलते अचानक बन जाते हैं अम्मा की आँखें </Poem>