उस ख़त की भी 
एक भाषा है---
अनगढ़ 
बेतरतीब 
पर स्नेह की गन्ध में पगी 
रिश्ते में सगी 
कलम से कम 
विश्वास की चरम सीमा से 
अधिक ठगी 
ख़त का मजमून 
उसे टेढ़े-मेढ़े 
पर सच्चे 
सपने को 
     खोलता है 
जिसे बुना है 
बड़े यत्न से अम्मा ने 
अपनी याद के महीन होते जा रहे 
धागों से 
कोंपल की तरह हर बार फ़ूटती 
हरे पत्ते तक पहुँच 
अचानक कुम्हला जाती है 
अम्मा की बूढ़ी आँख़ों में 
प्रतीक्षा 
ख़त के आखर 
अम्मा के हाथ हैं 
ऊपर उठे हुए 
आशीर्वाद की मुद्रा में 
ख़त के आखर 
बोलते-बोलते 
अचानक 
बन जाते हैं 
अम्मा की आँखें