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नौ सपने / भाग 4 / अमृता प्रीतम

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<poem>
मेरे और मेरी कोख तक –
यह सपनों का फ़ासला।

मेरा जिया हुलसा और हिया डरा,
बैसाख में कटने वाला
यह कैसा कनक था
छाज में फटकने को डाला
तो छाज तारों से भर गया...

<pre>... ... ...</pre>
</poem>
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