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{{KKRachna
|रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री
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<poem>

दुख को सुमुख बनाओ, गाओ !
काली घटा छंटेगी कैसे ?
रिमझिम-रिमझिम स्वर बरसाओ !

कौन सुने करुणा की वाणी ?
दीन दृगों के आँसू पानी !
पर अगीत संगीत अभी भी, -
इसका लयमय भेद बताओ !

असह सहो दृढ़ प्राण बनाओ,
अश्रुकणों को गान बनाओ,
जब सुख छिटके चन्द्रकिरण बन
सजल नयन झुक, चुप हो जाओ !
('उत्पल दल')
</poem>
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