भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यश मालवीय }} [[Category:नवगीत]] <Poem> एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=यश मालवीय
}}
[[Category:नवगीत]]
<Poem>
एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ
एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ
गीत जो अब तक नहीं गाया
हम उसे समझें सुनें आओ

:::हैं रिहर्सल में हमारी आत्माएँ
:::और मंचन की नहीं तारीख़ तय है
:::बोलने के नाम पर ज़्यादा कहें क्या
:::घुट रहे से शोर की ही चीख़ तय है,

एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ
उँगलियों पर ख़ून की बूँदें सजाएँ
फूल काँटों से चुनें आओ

:::नीच ट्रेजडी का कथानक भूल जाएँ
:::खुली खिड़की से निहारें आसमाँ
:::पाँव से ही ये ज़मी नत्थी रहे
:::और हम फिर-फिर पुकारें आसमाँ

एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ
आ रहे कल पर ज़रा सोचें-विचारें
सिर रुई जैसा धुनें आओ

:::कुछ नहीं 'रेडिकल' रहा तो क्या हुआ
:::बत्तखों जैसी सुबह अब भी सजे
:::रात में भी जाग उठती हैं उम्मीदें
:::दस बजे, ग्यारह बजे, बारह बजे

एक फ़ैण्टेसी बुनें आओ
है लबालब ताल आँखॊं का
गुनगुना पानी गुनें आओ
</poem>