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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=भारत भारद्वाज
|संग्रह=
}}
[[Category:कविताएँ]]
<Poem>
भले सरकारी मकान हो
लेकिन जिस घर में
आप रह रहे हों
दस साल से
जिस घर से
जुड़ा रहा है आपका सुख-दुख
कमरे से, दीवारों से, खिड़कियों से
आँगन से, छत से
उस घर को
टूटते हुए देखना
अपने अतीत को मिटाना है
वर्तमान में अकेला होना है।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=भारत भारद्वाज
|संग्रह=
}}
[[Category:कविताएँ]]
<Poem>
भले सरकारी मकान हो
लेकिन जिस घर में
आप रह रहे हों
दस साल से
जिस घर से
जुड़ा रहा है आपका सुख-दुख
कमरे से, दीवारों से, खिड़कियों से
आँगन से, छत से
उस घर को
टूटते हुए देखना
अपने अतीत को मिटाना है
वर्तमान में अकेला होना है।
</poem>