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|रचनाकार = शमशेर बहादुर सिंह
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साथ, सम, शांत;
स्वप्न - सी सुंदर;
सिर्फ़ दो ममियाँ।

कहाँ जगतीतल?
कहाँ नभ अमल?
कल? आज? कल?

नायकता की दो भवें
मिली; दो पलकें पीलीं;
स्थिर, सोईं।

वीतराग जीवन में गहरी
भूलों की
अधर-पंखुड़ियों-सी,
मौन, सुप्त।

सिर्फ़ दो ममियाँ।
हम, तुम।

(1939)
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