Changes

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कितनें कितने दिनों बाद आज फिर जब<br>
तुमसे सामना हुआ<br>
उस भीड़ में अकस्मात् अकस्मात ,<br>
जहाँ इसकी कोई आशंका न थी,<br>
तो मैं कैसा अचकचा गया<br>
भान हुआ<br>
लज्जा से मस्तक झुक गया अपनें आप ।<br>
याद पड़ा तुमनें तुमने ही दिया था<br>
वह बोध,<br>
जो प्यार के उलझे हुए धागों को<br>
कि जीवन में केवल प्रवंचना ही नहीं है<br>
अन्तर की अकिंचनताएँ प्रतिष्ठित<br>
सहयोगियों की कुटिलता ही नही नहीं है,<br>
किसी क्षणिक सिद्धि के दम्भ में<br>
शिखर की छाती कुचलने को उद्यत<br>