Changes

<poem>
सो कर नहीं बिता वासर दिन रात जागता रह मंदस्मित करुणा रसवर्षी वह अद्भुत बादल मधुकर जो सोता वह खो देता है मरुथल में जीवन मृदु करतल सहला सहला सिर हरता प्राण व्यथा निर्झर सर्वसमर्पित कर इस क्षण ही साहस कर मिट जा मिट जा मनोहारिणी चितवन से सर्वस्व तुम्हारा हर मनहर टेर रहा सर्वार्तिभंजिनी है उरविहारिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।21।।मुरलीधर।।11।।
सोच रहा क्या देख देख कितना प्यारा मनहर विविध भाव सुमनों की अपनी सजने दे क्यारी मधुकर मात्र टकटकी बाँध देखते उमड़ पड़ेगा रस कोना कोना सराबोर कर बहे वहाँ सच्चा निर्झर जीवन के प्रति रागरंग वह तेरे सारे सुमनों का तुम्हें सुना संगीत ललित रसग्राही आनन्दपथी टेर रहा है मंजुमोहिनी सर्वांतरात्मिका मुरली तेरा मुरलीधर।।22।।मुरलीधर।।12।।
देख रहा जो उसे देखने का संयोग बना मॅंडराते आनन पर तेरे उसके कंज नयन मधुकर दिशा शून्य चेतना खोज ले रासविहारी रस तृषित चकोरी सदृश देख तू उसका मुख मयंक निर्झरपर से निज पर ही निज दृग की फेर चपल चंचल पुतलीयुगल करतलों में रख आनन कर निहाल तुमको अविकल टेर रहा स्वात्मानुसंधिनी है मन्मथमथिनी मुरली तेरा तेरा मुरलीधर।।23।।मुरलीधर।।13।।
तेरे अधरों का गुंजन वह गीत वही स्वर वह सब प्रकार मेरे मेरे हो गदगद उर कह कह मधुकर उसे निहार निहाल बना ले पंकिल नयनों का युग युग से प्यासे प्राणों में देता ढाल सुधा निर्झर थक थक बैठ गया तू फिर भी भेंज रहा वह संदेशाभरिता कर देता रिक्ता को बिना दिये तुमको अवसर टेर रहा है शतावर्तिनी नादविग्रहा मुरली तेरा मुरलीधर।।24।।मुरलीधर।।14।।
अपने मन में ही प्रविष्ट नित माँग माँग फैला कर ले उसका मन अंचल बिलख विधाता से मधुकर बस उसके मन का ही रसमय झर झर झरने लहरा दे निर्झर जग प्रपंच को छीन तुम्हारा मन कर देगा बरसाना टेर रहा है उरनिकुंजिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।25।। सबसे सकता भाग स्वयं से भाग कहाँ सकता मधुकर भाग भाग कर रीता ही रीता रह जायेगा निर्झर कुछ होने कुछ पा जाने की आशा में बॅंध मर न विकलटेर रहा स्वात्मानुशिलिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।26।। यदि तोड़ना मूढ़ कुछ है तो तोड़ स्वमूर्च्छा ही मधुकर जड़ताओं के तृण तरु दल से रुद्ध प्राण कुरुप जीवन निर्झर शुचि जागरण सुमन परिमल से सुरभित कर जीवन पंकिल टेर रहा है पूर्णानन्दा मुरली तेरा मुरलीधर।।27।। क्या ‘मैं’ के अतिरिक्त उसे तूँ अर्पित कर सकता मधुकर शेष तुम्हारे पास छोड़ने को क्या बचा विषय निर्झर ‘मैं’ का केन्द्र बचा कर पंकिल कुछ देना भी क्या देना टेर रहा अहिअहंमर्दिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।28।। किसे मिटाने चला स्वयं का ‘मैं’ ही मार मलिन मधुकर एकाकार तुम्हारा उसका फिर हो जायेगा निर्झर शब्द शून्यता में सुन कैसी मधुर बज रही है वंशीटेर रहा विक्षेपनिरस्ता मुरली तेरा मुरलीधर।।29।। क्षुधा पिपासा व्याधि व्यथा विभुता विपन्नता में मधुकर स्पर्श कर रहा वही परमप्रिय सच्चा विविध वर्ण वह अभिनव सुषमा निर्झर उसकी लीला वही वही संकल्पधनी है सतरंगी झलमल झलमल जानता ढरकाता रस की गगरी टेर रहा है सर्वगोचरा प्रेमभिक्षुणि मुरली तेरा मुरलीधर।।30।।मुरलीधर।।15।।
</poem>
916
edits