Changes

छूकर न जाया करो / विजय वाते

38 bytes removed, 08:56, 21 अप्रैल 2009
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते
}}
<poem>
यार दहलीज़ छू कर ना जाया करो|
तुम कभी दोस्त बनकर भी आया करो|
यार दहलीज़ छू कर ना जाया करो|<br>क्या ज़रूरी है सुख दुख में ही बात हो,तुम जब कभी दोस्त बनकर भी आया फोन यूँ ही लगाया करो|<br><br>
क्या ज़रूरी है सुख दुख में ही बात होबीते आवारा दिन याद करके कभी,<br>जब कभी फोन यूँ ही अपने ठीये पे चक्कर लगाया करो|<br><br>
बीते आवारा दिन याद करके कभीवक्त की रेत मुठ्ठी में रुकती नहीं,<br>अपने ठीये पे चक्कर लगाया इसलिए कुछ हरे पल चुराया करो|<br><br>
वक्त की रेत मुठ्ठी में रुकती नहीं,<br>इसलिए कुछ हरे पल चुराया करो|<br><br> हमने गुमटी पर कल चाय पी थी "विजय"<br>
तुम भी आकर के मज़मे लगाया करो|
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,388
edits