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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तेवरी / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
कालकूट पी कौन जिया है, गली-गली में चर्चा है
चर्चा का मुँह कहाँ सिया है, गली-गली में चर्चा है


लाठी ने टोपी वालों से, गोली ने कुछ भूखों से
जासूसों का काम लिया है, गली-गली में चर्चा है


देसी खद्दर के कुर्तों ने , जिनकी मुट्ठी में कुर्सी
झुक कर उन्हें प्रणाम किया है, गली-गली में चर्चा है


बिजली वाले हर बादल को, पूंजीवादी सूरज ने
नक्सलपंथी नाम दिया है, गली-गली में चर्चा है


एक मसीहा ने प्यासों के, एक विदुर के हाथों से
पानी एक गिलास पिया है,गली-गली में चर्चा है
</Poem>