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18:26, 26 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
जब नसों में पीढ़ियों की, हिम समाता है
शब्द ऐसे ही समय तो काम आता है
बर्फ पिघलाना ज़रूरी हो गया , चूंकि
चेतना की हर नदी पर्वत दबाता है
बालियों पर अब उगेंगे धूप के अक्षर
सूर्य का अंकुर धरा में कुलबुलाता है
</Poem>