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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
काव्य को अंगार कर दे, भारती
शब्द हों हथियार, वर दे, भारती

हों कहीं शोषण-अनय-अन्याय जो
जूझने का बल प्रखर दे, भारती

सत्य देखें, सच कहें, सच ही लिखें
सत्य, केवल सत्य स्वर दे, भारती

सब जगें, जगकर मिलें, मिलकर चलें
लेखनी में शक्ति भर दे, भारती

हो धनुष जैसी तनी हर तेवरी
तेवरों के तीक्ष्ण शर दे, भारती</Poem>