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19:09, 1 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह= तेवरी / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>घर-दुकान बंद है
खानदान बंद है
नारे खुद बोलते
हर ज़ुबान बंद है
घंटे क्यों मौन हैं
क्यों अज़ान बंद है
कुर्तों की जेब में
संविधान बंद है
कुर्सी-संकेत पर
नव विहान बंद है
कीर्तिगान हो रहे
राष्ट्रगान बंद है
सिक्कों की जेल में
क्या जवान बंद है ?
फूटो ज्वालामुखी!
कि दिनमान बंद है </poem>