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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह= तेवरी / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>घर-दुकान बंद है
खानदान बंद है

नारे खुद बोलते
हर ज़ुबान बंद है

घंटे क्यों मौन हैं
क्यों अज़ान बंद है

कुर्तों की जेब में
संविधान बंद है

कुर्सी-संकेत पर
नव विहान बंद है

कीर्तिगान हो रहे
राष्ट्रगान बंद है

सिक्कों की जेल में
क्या जवान बंद है ?

फूटो ज्वालामुखी!
कि दिनमान बंद है </poem>