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आई जब उनकी याद तो आती चली गई <br>
हर नक़्शे नक़्श-ए-मासिवा को मिटाती चली गई<br><br>
हर मन्ज़रे मन्ज़र-ए-जमाल दिखाती चली गई <br>
जैसे उन्हीं को सामने लाती चली गई<br><br>
हर शै हसीन तर नज़र आती चली गई<br><br>
वीराना वीरान--हयात के एक -एक गोशे में <br>
जोगन कोई सितार बजाती चली गई <br><br>
दिल फुँक रहा था आतिशे ज़ब्तेफ़िराक़ आतिश-ए-ज़ब्त-ए-फ़िराक़ से <br>
दीपक को मेघहार बनाती चली गई <br><br>
बेहर्फ़ --बेहिकायत --बेसाज़ --बेसदा <br>रग -रग में नग़मा बन के समाती चली गई<br><br>
जितना ही कुछ सुकून सा आता चला गया <br>
उतना ही बेक़रार बनाती चली गई<br><br>
कैफ़ियतों को होश -सा आता चला गया <br>बेकैफ़ियतों को नीन्द नींद सी आती चली गई<br><br>
क्या -क्या न हुस्नेयार हुस्न-ए-यार से शिकवे थे इश्क़ को <br>क्या -क्या न शर्मसार बनाती चली गई<br><br>
तफ़रीक़े तफ़रीक़-ए-हुस्न --इश्क़ का झगड़ा नहीं रहा<br>तमइज़े तमइज़-ए-क़ुर्ब --बोद मिटाती चली गई<br><br>
मैं तिशना कामे काम-ए-शौक़ था पीता चला गया<br>
वो मस्त अंखडि़यों से पिलाती चली गई<br><br>
इक हुस्ने हुस्न-ए-बेजेहत की फ़िज़ाए बसीत में <br>
उठती हुई मुझे भी उठाती चली गई<br><br>
फिर मैं हूँ और इश्क़ की बेताबियाँ जिगर<br>
अच्छा हुआ वो नीन्द नींद की माती चली गई।
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