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Kavita Kosh से
मेरे दिमाग में भरा हुआ है बहुत सारा गुस्सा
रिसता रहता है जो अन्दर ही अन्दर
असहाय और एकांत|एकांत।
लेकिन नहीं जाने दूंगा बेकार
अपने गुस्से को,
मत छलकने दो -
गुस्सा।
आवाज़ में बदलने तक सब्र करो|करो।
</Poem>