भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} मैं प्रतिध्‍वनि‍ सुन चुका, ध...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}


मैं प्रतिध्‍वनि‍ सुन चुका, ध्‍वनि खोजता हूँ।


मौन मुखरित हो गया, जय हो प्रणय की,

पर नहीं परितृप्‍त है तृष्‍णा हृदय की,

पा चुका स्‍वर, आज गायन खोजता हूँ;

मैं प्रतिध्‍वनि‍ सुन चुका, ध्‍वनि खोजता हूँ।


तुम समर्पण बन भुजाओं में पड़ी हो,

उम्र इन उद्भ्रांत घड़‍ियों की बड़ी हो,

पा गया तन, आज मैं मन खोजता हूँ;

मैं प्रतिध्‍वनि‍ सुन चुका, ध्‍वनि खोजता हूँ।


है अधर में रस, मुझे मदहोश कर दो,

किंतु मेरे प्राण में संतोष भर दो,

मधु मिला है, मैं अमृतकण खोजता हूँ;

मैं प्रतिध्‍वनि‍ सुन चुका, ध्‍वनि खोजता हूँ।


जी उठा मैं, और जीना प्रिय बड़ा है,

सामने, पर, ढेर मुरदों का पड़ा,

पा गया जीवन, पर सजीवन खोजता हूँ;

मैं प्रतिध्‍वनि‍ सुन चुका, ध्‍वनि खोजता हूँ।
195
edits