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[[Category:ग़ज़ल]]
दोनों जहाँ देके दे के वो समझे ये ख़ुश रहा <br>
यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें<br><br>
थक -थक के हर मक़ाम पे दो चार रह गये<br>
तेरा पता न पायें तो नाचार क्या करें<br><br>
क्या शमा के नहीं है हवा ख़्वाह अहल-ए-बज़्म<br>
हो ग़म ही जां गुदाज़ तो ग़मख़्वार क्या करें<br><br>
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