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दोनों जहाँ देके वो समझे ये ख़ुश रहा / ग़ालिब
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दोनों जहां दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें
थक-थक के हर मुक़ाम पे दो चार रह गये
तेरा पता न पायें, तो नाचार<ref>जिनका बस ना चले</ref> क्या करें
क्या शम्अ़ के नहीं है हवाख़्वाह<ref>शुभचिंतक</ref> अहल-ए-बज़्म<ref>महफिल वाले</ref>
हो ग़म ही जांगुदाज़<ref>जान घुलाने वाला</ref> तो ग़मख़्वार क्या करें
शब्दार्थ
<references/>