भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सिर्फ़ एक रात की मेहमाँ है कोई क्या जाने
गुलशन-ए-ज़िस्त ज़ीस्त के हर फूल की रन्गीनी रंगीनी में दजला-ए- ख़ून-ए-रग-ए-जाँ है कोई क्या जाने
रंग-ओ-आहंग से बजती हुई यादों की बरात
रहरव-ए-जादा-ए-निसियाँ है कोई क्या जाने