भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िन्दगी ख़्वाबे-परीशाँ है कोई क्या जाने / जोश मलीहाबादी
Kavita Kosh से
ज़िन्दगी ख़्वाबे-परीशाँ है कोई क्या जाने
मौत की लरज़िशे-मिज़्गाँ है कोई क्या जाने
रामिश-ओ-रंग<ref>संगीत और रंग</ref> के ऐवान में लैला-ए-हयात
सिर्फ़ एक रात की मेहमाँ है कोई क्या जाने
गुलशने-ज़ीस्त के हर फूल की रंगीनी में
दजला-ए-ख़ूने-रगे-जाँ है कोई क्या जाने
रंग-ओ-आहंग से बजती हुई यादों की बरात
रहरवे-जादा-ए-निसियाँ<ref>भूले हुए रास्तों का राही</ref> है कोई क्या जाने
शब्दार्थ
<references/>