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17:34, 27 जून 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
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'''गार्गी उवाच'''
ऋषि!
तुम भले ही हाँक ले जाओ सब गाय
और भले ही, तत्वदर्शी होने का
अहं तुम्हारा
रहे जीवित
पर
‘आकाश’ में गूँजते
‘तरंगों’ में लहराते
‘विद्युत’-से कौंधते
मेरे प्रश्न तो सुनते जाओ
‘शास्त्रार्थ’ से तुम न दे सकोगे
इनके उत्तर
छूट जाएगा सारा दंभ।
छोड़ दो गउएँ
मूक प्राणी हैं.....
कुछ न कहेंगी
हकाल ले जाओ भले,
किंतु मैं
रोकती हूँ तुम्हारा मार्ग,
ठहरो.........!!
प्रश्न तो सुनो, याज्ञवल्क्य!!!
</poem>