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नाख़ुदा! कुछ ज़ोरे-तूफ़ाँ आज़माई भी दिखा।

फ़िक्रे-साहिल छोड़ लंगर डाल दे मजधार में॥


‘यास’! गुमराही से अच्छी ज़हमते-वामान्दगी।

डाल लो ज़ंजीर कोई पायेकफ़-रफ़्तार में॥


पैबन्दे-ख़ाक होने का अल्लाह रे इश्तयाक़।

उतरे हम अपने पाँव से अपने मज़ार में॥


शरमिन्दय-कफ़न न हुए आसमाँ से हम।

मारे पडे़ हैं सायए-दीवरे-यार से॥



कहते हो अपने फ़ेल का मुख़्तार है बशर।

अपनी तो मौत तक न हुई अख़्तियार मैं॥