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06:18, 13 जुलाई 2009
नाख़ुदा! कुछ ज़ोरे-तूफ़ाँ आज़माई भी दिखा।
फ़िक्रे-साहिल छोड़ लंगर डाल दे मजधार में॥
‘यास’! गुमराही से अच्छी ज़हमते-वामान्दगी।
डाल लो ज़ंजीर कोई पायेकफ़-रफ़्तार में॥
पैबन्दे-ख़ाक होने का अल्लाह रे इश्तयाक़।
उतरे हम अपने पाँव से अपने मज़ार में॥
शरमिन्दय-कफ़न न हुए आसमाँ से हम।
मारे पडे़ हैं सायए-दीवरे-यार से॥
कहते हो अपने फ़ेल का मुख़्तार है बशर।
अपनी तो मौत तक न हुई अख़्तियार मैं॥