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कोई ज़िद थी या समझ का फेर था।

मान गए वो मैंने जब उल्टी कही।


शक है काफ़िर को मेरे ईमान में।

जैसे मैंने कोई मुँह देखी कही॥


क्या खबर थी यह खुदाई और है।

हाय! क्यों मैंने खु़दा लगती कही॥