भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना स सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं
खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपर अपार प्रिये
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..
</poem>