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फिर कर लेने दो प्यार प्रिये / दुष्यंत कुमार
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अब अंतर में अवसाद नहीं 
चापल्य नहीं उन्माद नहीं 
सूना-सूना सा जीवन है 
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं 
तव स्वागत हित हिलता रहता 
अंतरवीणा का  तार प्रिये ..
इच्छाएँ मुझको लूट चुकी 
आशाएं मुझसे छूट चुकी 
सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ 
मेरे हाथों से टूट चुकी 
खो बैठा अपने हाथों ही 
मैं अपना कोष अपार  प्रिये 
फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..
 
	
	

