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17:17, 31 जुलाई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
|संग्रह=
}}[[Category:गज़ल]]
<poem>
मुहब्बत ही फ़ना ने बाद भी बररूयेकार आई।
न मुझको दीन रास आया, न दुनिया साज़गार आई॥
अँधेरा हो गया, दिल बुझ गया, सूनी हुई दुनिया।
बडी़ वीरानियों के बाद शामे-इन्तज़ार आई॥
न आई पायेइस्तग़ना में इक हल्की-सी लग़ज़िश भी।
म्रेरे रस्ते में ठोकर बन के, दुनिया बार-बार आई॥
</poem>