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मुहब्बत हॊ फ़ना के बाद भी बररूयेकार आई / सीमाब अकबराबादी
Kavita Kosh से
मुहब्बत ही फ़ना ने बाद भी बररूयेकार आई।
न मुझको दीन रास आया, न दुनिया साज़गार आई॥
अँधेरा हो गया, दिल बुझ गया, सूनी हुई दुनिया।
बडी़ वीरानियों के बाद शामे-इन्तज़ार आई॥
न आई पायेइस्तग़ना में इक हल्की-सी लग़ज़िश भी।
म्रेरे रस्ते में ठोकर बन के, दुनिया बार-बार आई॥