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{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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}}[[Category:गज़ल]]
<poem>

क्या जाने यह रहगीर है, रहबर है कि रहज़न?
हम भीड़ सरे-राहगुज़र देख रहे हैं॥

पहले तो नशेमन की तबाही पै नज़र थी।
अब हौसलये-बर्क़ो-शरर देख रहे हैं॥

पूछो मेरी परवाज़ का अन्दाज़ उन्हीं से।
यह लोग जो टूटे हुए पर देख रहे हैं॥

</poem>