714 bytes added,
17:20, 31 जुलाई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
|संग्रह=
}}[[Category:गज़ल]]
<poem>
क्या जाने यह रहगीर है, रहबर है कि रहज़न?
हम भीड़ सरे-राहगुज़र देख रहे हैं॥
पहले तो नशेमन की तबाही पै नज़र थी।
अब हौसलये-बर्क़ो-शरर देख रहे हैं॥
पूछो मेरी परवाज़ का अन्दाज़ उन्हीं से।
यह लोग जो टूटे हुए पर देख रहे हैं॥
</poem>