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{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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जितने सितम किये थे किसी ने अताब में।
वो भी मिला लिए करमे-बेहिसाब में॥

हर चीज़ पर बहार, हर इक शय पै हुस्न था।
दुनिया जवान थी मेरे अहदे-शबाब में॥

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