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जितने सितम किए थे किसी ने अताब में / सीमाब अकबराबादी
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जितने सितम किये थे किसी ने अताब में।
वो भी मिला लिए करमे-बेहिसाब में॥
हर चीज़ पर बहार, हर इक शय पै हुस्न था।
दुनिया जवान थी मेरे अहदे-शबाब में॥