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{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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क़फ़स में खींच ले जाये मुक़द्दर या नशेमन में।
हमें परवाज़ से मतलब है, चलती हो हवा कोई॥

वफ़ा करके मैं यूँ बैठा हूँ फ़ैलाये हुए दामन।
कि जैसे बाँटता फ़िरता है इनआ़मे-वफ़ा कोई॥

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