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|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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[[Category:गज़ल]]
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मदारे-हर अमले-नेकोबद है नीयत पर।
अगर हुनाह की नीयत न हो गुनाह नहीं॥

नक़ाब उलट दिया मूसा ने तूर पर उनका।
अगर गुनाह सलीक़े से हो, गुनाह नहीं॥


</poem>