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{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
|संग्रह=
}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>
ऐसे भी हमने देखे हैं दुनिया में इनक़लाब।
पहले जहाँ क़फ़स था, वहाँ आशियाँ बना॥
सारे चमन को मैं तो समझता हूँ अपना घर।
तू आशियाँपरस्त है, जा, आशियाँ बना॥
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
|संग्रह=
}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>
ऐसे भी हमने देखे हैं दुनिया में इनक़लाब।
पहले जहाँ क़फ़स था, वहाँ आशियाँ बना॥
सारे चमन को मैं तो समझता हूँ अपना घर।
तू आशियाँपरस्त है, जा, आशियाँ बना॥
</poem>