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ऐसे भी हमने देखे हैं दुनिया में इनक़लाब / सीमाब अकबराबादी
Kavita Kosh से
ऐसे भी हमने देखे हैं दुनिया में इनक़लाब।
पहले जहाँ क़फ़स था, वहाँ आशियाँ बना॥
सारे चमन को मैं तो समझता हूँ अपना घर।
तू आशियाँपरस्त है, जा, आशियाँ बना॥