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13:35, 4 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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[[Category:गज़ल]]
<poem>
इश्क़ है सहल, मगर हम हैं वो दुश्वार-पसन्द।
कारे-आसाँ को भी दुशवार बना लेते हैं॥
""" """ """
वो ख़ुद भी समझते नहीं मुझको सायल।
कुछ इस शान से गोद फैला रहा हूँ॥