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{{KKRachna
|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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[[Category:गज़ल]]
<poem>


इश्क़ है सहल, मगर हम हैं वो दुश्वार-पसन्द।
कारे-आसाँ को भी दुशवार बना लेते हैं॥


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वो ख़ुद भी समझते नहीं मुझको सायल।
कुछ इस शान से गोद फैला रहा हूँ॥