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मक्खी की तरह पड़ी है
आपकी चाय की प्याली में
हमारी वफ़ादारी
मक्खी की तरह पड़ी है<br />हमआपकी चाय जो बाबर की प्याली में<br />औलादें नहींबाहर निकलना चाहते हैंहमारी वफ़ादारी<br />पूर्वाग्रह और पाखंड के इस मक़बरे से
आख़िरकब तक सुनते रहेंगे हम<br />जो बाबर की औलादें नहीं<br />बाहर निकलना चाहते हैं<br />पूर्वाग्रह और पाखंड इतिहास के इस मक़बरे से<br />झूठे खंडहरों मेंअपनी ही चीत्कार की अनुगूँज
आख़िर<br />कब तक सुनते रहेंगे हम<br />इतिहास के झूठे खंडहरों में<br />अपनी ही चीत्कार की अनुगूँज<br /> आप<br />जो बंसी बजा रहे हैं<br />गणतन्त्र रूपी गाय की पीठ पर बैठे<br />शहर के सबसे पुराने क़ब्रिस्तान से <br />उठती ये आवाजें<br />सुनाई दे रही हैं आपको !!<br /poem>