660 bytes added,
16:56, 23 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सफ़ी लखनवी
}}
<poem>
क्योंकर यहाँ तुम्हारी तबीयत बहल गई।
इतनी ही ज़िंदगी हमें ऐ खिज़्र! खल गई॥
जब एक रोज़ जान का जाना ज़रूर है।
फिर फ़र्क क्या वह आज गई, ख्वाह कल गई॥
जब दम निकल गया ख़लिशे-ग़म भी मिट गई।
दिल में चुभी थी फाँस जो दिल से निकल गई॥
<poem>