भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी |संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ ग...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
है अभी महताब बाक़ी और बाक़ी है शराब
और बाक़ी मेरे तेरे दरम्याँ सदहा हिसाब।

दीद अन्दर दीद, हैरानम हेजाब अन्दर हेजाब
वाय बावस्फ़े ईं क़दर-राजो-नयाज़ ईं इजतेनाब।

दिल में यूँ बेदार होते हैं ख़यालाते-ग़ज़ल
आँख मलते जिस तरह उट्ठे कोई मस्ते-शबाब
</poem>
157
edits