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{{KKRachna
|रचनाकार=सत्यपाल सहगल
|संग्रह=कई चीज़ें / सत्यपाल सहगल
}}
<poem>
एक ही बेटा था माँ तुम्हारा
वह भी बनना चाहता था कवि
अपनी पूरी माँस मज्जा से
तुम्हारा चिंतित होना स्वभाविक था
जीवन भर
तुमने उस खिड़की के खुलने का इंतज़ार किया था
जो बेहतर मौसम की ओर खुलती है
दिन,मास,वर्ष,तक तय किए थे तुमने
तुमने उसे देखा कविता की आग में जलते हुए
और तुम्हारा कलेजा धक्क रह गया।</poem>
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