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अय्यामे-बहारां में दीवानों के तेवर भी
जिस सम्ते सम्त नज़र उट्ठी आलक आलम का बदल जाना
घनघोर घटाओं में सरशार फ़ज़ाओं में
मख्म़ूघर मख्म़ूर हवाओं में मुश्किल है सँभल जाना
हूँ लग़्जिशे मस्ताना<sup>3</sup> मैख़ान-ए-आलम में
बर्के़-निगहे-साक़ी कुछ बच के निकल जाना
इस गुलशने-हस्तीं हस्ती में कम खिलते हैं गुल ऐसे
दुनिया महक उट्ठेगी तुम दिल को मसल जाना
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